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"कोई रस्ता है न मंज़िल / कुँअर बेचैन" के अवतरणों में अंतर

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|रचनाकार=कुँअर बेचैन
 
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कोई रस्ता है न मंज़िल न तो घर है कोई
 
कोई रस्ता है न मंज़िल न तो घर है कोई
 
 
आप कहिएगा सफ़र ये भी सफ़र है कोई
 
आप कहिएगा सफ़र ये भी सफ़र है कोई
 
  
 
'पास-बुक' पर तो नज़र है कि कहाँ रक्खी है
 
'पास-बुक' पर तो नज़र है कि कहाँ रक्खी है
 
 
प्यार के ख़त का पता है न ख़बर है कोई
 
प्यार के ख़त का पता है न ख़बर है कोई
 
  
 
ठोकरें दे के तुझे उसने तो समझाया बहुत
 
ठोकरें दे के तुझे उसने तो समझाया बहुत
 
 
एक ठोकर का भी क्या तुझपे असर है कोई
 
एक ठोकर का भी क्या तुझपे असर है कोई
 
  
 
रात-दिन अपने इशारों पे नचाता है मुझे
 
रात-दिन अपने इशारों पे नचाता है मुझे
 
 
मैंने देखा तो नहीं, मुझमें मगर है कोई
 
मैंने देखा तो नहीं, मुझमें मगर है कोई
 
  
 
एक भी दिल में न उतरी, न कोई दोस्त बना
 
एक भी दिल में न उतरी, न कोई दोस्त बना
 
 
यार तू यह तो बता यह भी नज़र है कोई
 
यार तू यह तो बता यह भी नज़र है कोई
 
  
 
प्यार से हाथ मिलाने से ही पुल बनते हैं
 
प्यार से हाथ मिलाने से ही पुल बनते हैं
 
 
काट दो, काट दो गर दिल में भँवर है कोई
 
काट दो, काट दो गर दिल में भँवर है कोई
 
  
 
मौत दीवार है, दीवार के उस पार से अब
 
मौत दीवार है, दीवार के उस पार से अब
 
 
मुझको रह-रह के बुलाता है उधर है कोई
 
मुझको रह-रह के बुलाता है उधर है कोई
 
  
 
सारी दुनिया में लुटाता ही रहा प्यार अपना
 
सारी दुनिया में लुटाता ही रहा प्यार अपना
 
 
कौन है, सुनते हैं, बेचैन 'कुँअर' है कोई
 
कौन है, सुनते हैं, बेचैन 'कुँअर' है कोई
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17:49, 7 जनवरी 2010 के समय का अवतरण

कोई रस्ता है न मंज़िल न तो घर है कोई
आप कहिएगा सफ़र ये भी सफ़र है कोई

'पास-बुक' पर तो नज़र है कि कहाँ रक्खी है
प्यार के ख़त का पता है न ख़बर है कोई

ठोकरें दे के तुझे उसने तो समझाया बहुत
एक ठोकर का भी क्या तुझपे असर है कोई

रात-दिन अपने इशारों पे नचाता है मुझे
मैंने देखा तो नहीं, मुझमें मगर है कोई

एक भी दिल में न उतरी, न कोई दोस्त बना
यार तू यह तो बता यह भी नज़र है कोई

प्यार से हाथ मिलाने से ही पुल बनते हैं
काट दो, काट दो गर दिल में भँवर है कोई

मौत दीवार है, दीवार के उस पार से अब
मुझको रह-रह के बुलाता है उधर है कोई

सारी दुनिया में लुटाता ही रहा प्यार अपना
कौन है, सुनते हैं, बेचैन 'कुँअर' है कोई