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कोई हमीं से आँख चुराये तो क्या करें / गुलाब खंडेलवाल

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कोई हमीं से आँख चुराए तो क्या करें!
पर्वत को तिल की ओट छिपाए तो क्या करें!

हम लेके इसे छाना किये हर जगह की ख़ाक
यह दिल कहीं भी चैन न पाए तो क्या करें!

पीना है ज़िन्दगी में घड़ी-दो-घड़ी का शौक
पीकर न कोई होश में आये तो क्या करें!

उनकी गली से होश था उठने का भी किसे!
दुनिया हमीं को आँख दिखाए तो क्या करें!

भाती नहीं हो जिसको पँखुरियाँ गुलाब की
उसको ग़ज़ल भी रास न आये तो क्या करें!