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कोउ मोहिं पिय की गैल बतावै 2 / स्वामी सनातनदेव

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राज गूजरी, तीन ताल 28.7.1974

कोउ मोहिं पिय की गैल बतावै।
पिया बिना मैं अटकूँ-भटकूँ, जियरा अति अकुलावै॥
जनम-जनम भटकत ही बीते, अब पिय सुरति सतावै।
आकुल व्याकुल फिरूँ अटकती, प्रीतम कहूँ न पावै॥1॥
हिय में होत हुमक कछु ऐसी, प्रीतम मोहिं बुलावै।
पै कोउ ऐसो मिल्यौ न नेही, जो पिय लगि पहुँचावै॥2॥
सब विधि भई निरास प्रानधन! यह का तुमहिं सुहावै।
आओ, आओ वेगि, भला तुम बिनु को तुमहिं मिलावै॥3॥
तुम ही पन्थ तुम्हीं हो पन्थी, जो तुमलगि पहुँचावै।
बिना तुम्हारी कृपा प्रानधन! तुमहिं कौन कब पावै॥4॥
आओ मेरे पन्थी! तुम बिनु मनुआँ अति घबरावै।
एक बार जो मिलहु पिया! तो जिय की जरनि जुड़ावै॥5॥

शब्दार्थ
<references/>