भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

कोठी-बियाबानी / वीरेन डंगवाल

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 19:20, 12 जनवरी 2008 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=वीरेन डंगवाल |संग्रह=दुष्चक्र में सृष्टा / वीरेन डंगव...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज




निद्रालस भरा-भरा

बियाबान अब न रहा ।

रास्ता आम है अब

और काफ़ी मशगूल ।

डैनों के बल फाटक के खम्भों पर लटकीं

काई पुती सीमेंट की फ़रिश्तिनें

ताकती हैं ट्राफ़िक को ।

इतने जाते हैं, इतने आते

मगर कोई आता नहीं ।