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कोयल से कह दो--/ गुलाब खंडेलवाल

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कोयल से कह दो--
इस तरह शोर न मचाये,
राजकुमारी को नींद आ रही है.
माना, इसका गीत उसे बहुत ही भाया था,
जब इसने मस्ती में झूम-झूमकर गाया था,
उस समय उपवन में वसंत आया था,
किन्तु अब तो पतझड़ की वेला है
राजकुमारी ने सारा दुख मन-ही-मन झेला है
कोयल से कह दो--
यों रसभरे बोल न सुनाये,
यह जलन और सही नहीं जा रही है
कोयल की चोंच सोने से मढ़ा दी जायगी,
पाँवों के लिए चाँदी की पाजेब गढ़ा दी जायगी,
दूध और भात की मात्रा और बढ़ा दी जायगी.
हर समय यों नहीं गाना होता है,
कभी-कभी चुप्पी से ही भाव जताना होता है,
कोयल से कह दो--
वह कहीं और चली जाये,
क्यों बीती बातें याद दिला रही है!
मैना, मोर, पपीहे सभी गा-गाकर चुप हो चुके,
अपने-अपने नीड़ों में जाकर सो चुके,
सभी अपने स्वरों का वह पहला जादू खो चुके,
पर यह कोयल तो दीवानी लगती है,
अब भी इसके मन में गाने की धुन जगती है;
कोयल से कह दो--
वह भी अब पत्तों में मुँह छिपाये,
चारों और गहरी उदासी छा रही है.
कोयल से कह दो--
इस तरह शोर न मचाये,
राजकुमारी को नींद आ रही है.