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"क्या छिपी है अब हमारे दिल की हालत आपसे! / गुलाब खंडेलवाल" के अवतरणों में अंतर
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08:21, 2 जुलाई 2011 का अवतरण
क्या छिपी है अब हमारे दिल की हालत आपसे!
कुछ तो ऐसा हो कि हो मिलने की सूरत आपसे
ख़ाक के पुतलों में क्या है और इस दिल के सिवा!
दिल की रंगत ग़म से है, ग़म की है रंगत आपसे
दो घड़ी हँस बोल लेना भी ग़नीमत जानिए
ज़िन्दगी देती है कब मिलने की मुहलत आपसे!
वह ग़ज़ल के नुक्ते-नुक्ते से है दुनिया पर खुली
लाख हम इस दिल की बेताबी कहें मत आपसे
कब भला इस बाग़ की हद से निकल पाए गुलाब!
आप तक आये हैं चलकर, होके रुख़सत आपसे