भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

क्या पता किसकी निगहबानी में था / ज्ञान प्रकाश विवेक

Kavita Kosh से
द्विजेन्द्र द्विज (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 17:13, 7 दिसम्बर 2008 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


क्या पता किसकी निगहबानी में था
घ था कच्चा और वो पानी में था

मैंने लपटों को उठाया जिस क़दर-
सच कहूँ, मैं ख़ुद भी हैरानी में था

खोलता कोई नहीं था साँकलें
वक़्त का मारा पशेमानी में था

आँख का तालाब छलका था ज़रा
शोर-सा कुछ मन की वीरानी में था

मेमने की ज़िन्दगी का सोचिए,
एक चीता उसकी अगवानी में था.