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"क्या हूँ मैं तुम्हारे लिए... / निर्मला पुतुल" के अवतरणों में अंतर

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क्या हूँ मैं तुम्हारे लिए...?
 
क्या हूँ मैं तुम्हारे लिए...?
 
एक तकिया
 
एक तकिया
कि कहीं से थका-मांदा आया और सिर टिका दिया
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कि कहीं से थका-मांदा आया  
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और सिर टिका दिया
  
 
कोई खूँटी
 
कोई खूँटी
कि ऊब, उदासी थकान से भरी कमीज़ उतारकर टाँग दी
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कि ऊब, उदासी थकान से भरी  
 
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कमीज़ उतारकर टाँग दी
 
या आँगन में तनी अरगनी
 
या आँगन में तनी अरगनी
कि कपड़े लाद दिए
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कि घर-भर के कपड़े लाद दिए
घर
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कि सुबह निकला और शाम लौट आया
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कोई घर
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कि सुबह निकला  
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शाम लौट आया  
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कोई डायरी
 
कोई डायरी
कि जब चाहा कुछ न कुछ लिख दिया
+
कि जब चाहा  
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कुछ न कुछ लिख दिया
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या ख़ामोश खड़ी दीवार
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कि जब जहाँ चाहा
 +
कील ठोक दी
  
या ख़ामोशी-भरी दीवार
 
कि जब चाहा वहाँ कील ठोक दी
 
 
कोई गेंद
 
कोई गेंद
कि जब तब जैसे चाहा उछाल दी
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कि जब तब  
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जैसे चाहा उछाल दी  
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या कोई चादर
 
या कोई चादर
कि जब जहाँ जैसे तैसे ओढ-बिछा ली
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कि जब जहाँ जैसे-तैसे  
क्यूँ ? कहो, क्या हूँ मैं तुम्हारे लिए ?  
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ओढ-बिछा ली?
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चुप क्यूँ हो!
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कहो , क्या हूँ मैं  
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तुम्हारे लिए ?  
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'''[[के हुँ म तिम्रा लागि ? / निर्मला पुतुल / सुमन पोखरेल|यहाँ क्लिक गरेर यस कविताको नेपाली अनुवाद पढ्न सकिन्छ ।]]'''
 
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09:10, 25 अगस्त 2023 के समय का अवतरण

क्या हूँ मैं तुम्हारे लिए...?
एक तकिया
कि कहीं से थका-मांदा आया
और सिर टिका दिया

कोई खूँटी
कि ऊब, उदासी थकान से भरी
कमीज़ उतारकर टाँग दी
या आँगन में तनी अरगनी
कि घर-भर के कपड़े लाद दिए

कोई घर
कि सुबह निकला
शाम लौट आया

कोई डायरी
कि जब चाहा
कुछ न कुछ लिख दिया

या ख़ामोश खड़ी दीवार
कि जब जहाँ चाहा
कील ठोक दी

कोई गेंद
कि जब तब
जैसे चाहा उछाल दी

या कोई चादर
कि जब जहाँ जैसे-तैसे
ओढ-बिछा ली?

चुप क्यूँ हो!
कहो न, क्या हूँ मैं
तुम्हारे लिए ?

......................................................................
यहाँ क्लिक गरेर यस कविताको नेपाली अनुवाद पढ्न सकिन्छ ।