भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"क्यूँ चुप-चुप सा खड़ा है दर्द / श्रद्धा जैन" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
पंक्ति 5: | पंक्ति 5: | ||
{{KKCatGhazal}} | {{KKCatGhazal}} | ||
<poem> | <poem> | ||
− | + | चुप-चुप सा क्यूँ खड़ा है दर्द | |
आँखों में जब हरा है दर्द | आँखों में जब हरा है दर्द | ||
− | + | लोगों से मिलने-जुलने पर | |
− | + | कम होना था, बढ़ा है दर्द | |
− | पलकों की छत | + | पलकों की छत पे रुकता क्यूँ |
− | + | शायद के कुछ डरा है दर्द | |
− | यादों की | + | यादों की आग में जल के |
− | + | हमने कहा के खरा है दर्द | |
− | + | राह ए वफा में श्रद्धा बस | |
− | + | देखा, लिखा, पढ़ा है दर्द | |
</poem> | </poem> |
03:17, 30 अप्रैल 2014 का अवतरण
चुप-चुप सा क्यूँ खड़ा है दर्द
आँखों में जब हरा है दर्द
लोगों से मिलने-जुलने पर
कम होना था, बढ़ा है दर्द
पलकों की छत पे रुकता क्यूँ
शायद के कुछ डरा है दर्द
यादों की आग में जल के
हमने कहा के खरा है दर्द
राह ए वफा में श्रद्धा बस
देखा, लिखा, पढ़ा है दर्द