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"क्यूँ चुप-चुप सा खड़ा है दर्द / श्रद्धा जैन" के अवतरणों में अंतर

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क्यूँ चुप-चुप सा खड़ा है दर्द
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चुप-चुप सा क्यूँ खड़ा है दर्द
 
आँखों में जब हरा है दर्द
 
आँखों में जब हरा है दर्द
  
हँसते-खिलते लोगों से मिल
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लोगों से मिलने-जुलने पर
कुछ तो शायद डरा है दर्द
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कम होना था, बढ़ा  है दर्द
  
पलकों की छत पर है रोका
+
पलकों की छत पे रुकता क्यूँ 
मुंडेरों पे मरा है दर्द
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शायद के कुछ डरा है दर्द
  
यादों की इक आग जला कर
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यादों की आग में जल के
कहा है हमने खरा है दर्द
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हमने कहा के खरा है दर्द  
  
तुमने वफ़ा के सफ़र में 'श्रद्धा'
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राह ए वफा में श्रद्धा बस
सुना लिखा और पढ़ा है दर्द
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देखा, लिखा, पढ़ा है दर्द
 
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03:17, 30 अप्रैल 2014 का अवतरण

चुप-चुप सा क्यूँ खड़ा है दर्द
आँखों में जब हरा है दर्द

लोगों से मिलने-जुलने पर
कम होना था, बढ़ा है दर्द

पलकों की छत पे रुकता क्यूँ
शायद के कुछ डरा है दर्द

यादों की आग में जल के
हमने कहा के खरा है दर्द

राह ए वफा में श्रद्धा बस
देखा, लिखा, पढ़ा है दर्द