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क्रीड़ा / शिशुपाल सिंह यादव ‘मुकुंद’

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परंपरा से खेल,खेलते सब ही आएं
सब अतिशय मोद, ह्रदय में इससे पाएं
तन-मन को अति पुष्ट,बना देती है क्रीड़ा
सब ही ने इस हेतु उठाया इसका बीड़ा

युवा-वृद्ध अरु बाल,खेल को ही भाते हैं
खेल-खेल में मेल,ढूढ़कर वे लाते हैं
अनुशासन आदर्श, खेल हरदम सिखलाता
धीर -वीर -गंभीर,कुशल सैनिक उपजाता

खेल सदा जारी रहे,तनिक कहीं न विराम हो
सकल खिलाड़ी मुग्ध हों, क्रीड़ास्थल अभिराम हो