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"क्षणिकाएँ - 1 / ममता व्यास" के अवतरणों में अंतर

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09:23, 3 जून 2021 के समय का अवतरण

कुछ चीजें कभी लौट कर वापस नहीं आतीं,
वे अफ़सोस बनकर हमारे दिल की गुफा में भटकती रहती हैं।
इस भटकन से हम थर्राते हैं, कांपते हैं और एक दिन भरभराकर गिर जाते हैं।


तुमने विश्व की हर महत्त्वपूर्ण पुस्तक पढ़ी,
लेकिन तुम कितने अनपढ़ हो, ये बात सिर्फ़ प्रेम जानता है।


प्रेम कवि प्रेम ग्रन्थ लिखने में व्यस्त थे
प्रेम दरवाजे पर दस्तक देता रहा


दो लोग जब आपस में लड़-झगड़ कर बिछड़े
अक्सर वे दोबारा फिर से मिले।
दो लोग जब बिन कुछ कहे चुपचाप अलग हुए
वे दोबारा फिर कभी नहीं मिले।


पहले मरती है एक दूसरे की फ़िक्र।
फिर मरती है आपस की बातें
फिर एक दिन मर जाता है आपस का प्यार


मत डरना जब उम्मीद टूट जाये
मत डरना जब हाथ छूट जाए
मत डरना जब संग भी छूट जाये
तुम ज़रूर डरना उस दिन
जब आपस की लय टूट जाये


आपस की लय का टूटना
दिल, सपने, उम्मीद, वादों और कसमों के टूटने से भी बुरा होता है।
कुछ लोग गहरे अंधे कुएँ की तरह थे
उनके भीतर भावनाएँ उमड़ती,
मुंडेर तक आती और फिर
उनके भीतर ही कूद कर ख़ुदकुशी कर लेती।


हम लोग कभी भी आत्महत्या नहीं कर सकते,
क्योकिं पहले कई दफ़ा हमारी हत्याएँ हो चुकी हैं।


कभी–कभी जीवन इतना कठिन हो जाता है कि
हमें जीने के, हंसने के, मुस्कुराने के बहाने खोजने पड़ते हैं।


सदियों तक पीछा करेगीं आहें और पुकार
तुम बस ये सोचो कैसे बचाओगे ख़ुद को


तुम इतने अबोध थे कि तुमने प्रेम और भावनाओं से बने उस रंगीन गुब्बारे को, अपनी रबर की गेंद समझ कर आसमान में उछाल दिया।
ये सोचकर कि वह गेंद की तरह वापस आ जायेगा।


लम्बी कहानी और लम्बे चले वाले प्रेम इन दिनों चलन से बाहर हैं।


ज़िन्दगी तो दुःख और दर्द से बुना गया एक स्वेटर है। ख़ुशी तो बस उस पर लगे सुंदर बटन जैसी ही है।


एकतरफा प्रेम का एकमात्र लाभ यह है कि आप जब चाहे अपनी मर्जी से अलग हो सकते हैं बिना किसी स्पष्टीकरण के।


अपने जीवन में दो लोगों से अपने दुःख छिपाए
एक वे जिन्हें प्रेम करती थी
दूजे वे जिन्हें प्रेम नहीं करती थी।


बड़ी–बड़ी आखों ने छोटे–छोटे खाब दिए
छोटी–छोटी बातों ने बड़े-बड़े घाव दिए।


जब वह अपने ईगो के भारी भरकम जूते पहन कर गुजरता तो उसके
पैरों तले कई खूबसूरत और कोमल रिश्ते कुचल कर मर जाते।


कच्चे घड़े और कच्चे रिश्ते एक जैसे होते हैं, एक दफा पक जाए तो फिर नहीं टूटते।


अपने गुनाहों के बोझ से भरे सामान हमें ख़ुद ही उठाने पड़ते हैं,
कोई कुली हमारी तरफ़ झांकता ही नहीं, क्योकिं हम शक्ल से ही मुफ़लिस दिखाई देते हैं।


तुम इतने बिखरे हुए हो कि दुनिया की किसी भी स्त्री के हाथ तुम्हें समेट नहीं सकते।


जो एक बार घर की दहलीज़ पार कर गये वे कभी लौटे ही नहीं।
जिन्हें निभाने थे आने के वचन वे दहलीज़ के इस पार आये ही नहीं।
घर के दरवाजे और दीवारों ने सदियों तक दहलीज़ को ख़ूब कोसा।
एकदिन इतंजार की छत लटक दहलीज़ ने ख़ुदकुशी कर ली।


वह कांच का नाज़ुक एक्वेरियम जैसा था, इच्छाओं की रंगीन मछलियाँ उसके भीतर तैरती रहती थी।


अक्सर हम प्रेम भरी चिट्ठियों को जीवन भर सम्भाल कर रखते हैं, लेकिन चिट्ठी लिखने वाले हाथों को खो देते हैं।


रिश्तों को पकाने के लिए उन्हें वक़्त के अलाव में रखो और भूल जाओ।
जब हम प्यार में डूबे होते हैं तो एकदूसरे की भाषा नहीं, एकदूसरे की आत्मा का संगीत सुनते हैं।
जब प्यार से बाहर निकल आते हैं, तब एकदूसरे की भाषा और शब्दों पर ग़ौर करते हैं, फिर ताउम्र एक-एक शब्द पकड़ कर लड़ते रहते हैं।


ज़िन्दगी में जो भी मिला हथियारों के साथ मिला। हम निहत्थे कब तक ख़ुद को बचाते, सो एक दिन मर गए।


कभी समझ नहीं आया कि रोटी कमाने वाले हाथ ज़्यादा कीमती थे या रोटी पकाने वाले।


कुछ युद्ध मन की धरती पर हुए, जिसमें हम ख़ुद ही ख़ुद से लड़ते रहे। ख़ुद ही ख़ुद से हारे और एकदिन हमने ख़ुद को ख़त्म कर दिया।


बचपन में प्यास का मरा व्यक्ति ज़िन्दगी भर कुएँ खोदता है,
बचपन में प्यार का मारा व्यक्ति ज़िन्दगी भर रिश्ते खोजता है।


अपने दीवानेपन को अपनी अदा से जो छिपा ले वह सयाना
जो अपना सयानापन सरे बाज़ार खो दे वह दीवाना।
आलिशान घरों के भीतर कई उजड़े श्मशान मिले,
श्मशान के वीरानों में रूहों के परिवार मिले।


जीती जगती दुनिया में मरे–मरे से लोग मिले
हंसते लोगों के भीतर दुखों के सौ-सौ रोग मिले।


तुम मत डरना जब कोई किसी की आने / जाने / खाने / पीने / उठने / जागने की फ़िक्र करने लगे।
तुम ज़रूर डरना जिस दिन ये फ़िक्र ही मर जाये और कोई किसी से न पूछे के कहाँ दिन गुज़ारा कहाँ रात की।


तुम मत डरना, जब वे दोनों अपनी–अपनी आत्मा को एकदूजे की देह में छिपाने के लिए नंगे पैर दौड़ते दिखाई दें।
लेकिन तुम ज़रूर डरना जब वे दोनों अपने–अपने अहम। अभिमान, चतुराई के जूते पहन के इतराने लगे।


तुम मत डरना, जब कभी वे दोनों ख़ुद को एकदूजे में खो दें, रोंप दें, गँवा दें मिटा दें,।
तुम ज़रूर डरना जब वे किसी दिन अपनी–अपनी पहचान, परिचय एकदूजे को बताने लगे।
तुम मत डरना जब वे दोनों वक़्त बेवक्त एकदूजे की पनाह में चले जाए और एकदूजे में ख़ुद को गुम कर दें।
तुम ज़रूर डरना, जब वे दोनों ख़ुद को बचाने लगें और एकदूजे से बचने लगें।


तुम मत डरना, जब रातदिन बातें करने के बाद भी उन दोनों की ना बातें ख़त्म हो न दिल ही भरे।
तुम ज़रूर डरना जब उन दोनों के बीच की बातें मर जाये।


सोने चांदी से दिल की मरम्मत नहीं की जाती
मन की दरारें मन की मिट्टी से ही भरी जातीं।


एकदिन हम सबके पते खो जाने हैं
फिर हम कभी कहीं नहीं मिलेंगे
भेजी गयी सभी चिट्ठियाँ और भेजे गए संदेश
फूट–फोट कर रोयेंगे और ख़ुदकुशी कर लेंगे।


वो जब भी प्रेम में पड़ता ख़ुद को दीवाना कहता
स्त्रियाँ उसकी इस अदा पर हंसती, लेकिन प्रेम उदास होकर उसे सयाना कहता।


उसकी दीवानगी भी बड़ी सयानी थी, वह अक्सर सयानेपन के धनुष से दीवानगी के तीर चलाता और शिकार करता।


तुमसे तुम्हारा सयानापन नहीं छूटा मुझसे मेरा दीवानापन।
एकदिन प्रेम ही हमसे घबरा के हमें छोड़ गया।


उसके दीवानेपन और सयानेपन में एक महीन रेखा थी वह अपनी मर्जी से कभी भी इस पार से उस पार जा सकता था।
जिस दिन आखं के आसूं और समन्दर का जल सूख जायेगा, उस दिन हर दुःख हर दर्द लज्जा से मर जायेगा।