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"ख़त्म रंगों से भरी रात हुई जाती है / गुलाब खंडेलवाल" के अवतरणों में अंतर

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ख़ुद ही बाज़ी ये मगर मात हुई जाती है
 
ख़ुद ही बाज़ी ये मगर मात हुई जाती है
  
उनके आगे नहीं मुंह खोल भी पाते हों गुलाब
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उनके आगे नहीं मुँह खोल भी पाते हों गुलाब
 
आँखों-आँखों में ही कुछ बात हुई जाती है
 
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00:34, 9 जुलाई 2011 के समय का अवतरण


ख़त्म रंगों से भरी रात हुई जाती है
ज़िन्दगी भोर की बारात हुई जाती है

उनको छुट्टी नहीं मेंहदी के लगाने से उधर
और इधर अपनी मुलाक़ात हुई जाती है

भूलता ही नहीं कहना तेरा नम आँखों से
'अब तो रुक जाइए, बरसात हुई जाती है'

यों तो दुनिया तेरी हर चाल समझते हैं हम
ख़ुद ही बाज़ी ये मगर मात हुई जाती है

उनके आगे नहीं मुँह खोल भी पाते हों गुलाब
आँखों-आँखों में ही कुछ बात हुई जाती है