भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

ख़त आ चुका, मुझसे है वही ढंग अब तलक / सौदा

Kavita Kosh से
विनय प्रजापति (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:00, 3 फ़रवरी 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सौदा }} category: ग़ज़ल <poem> ख़त आ चुका, मुझसे है वही ढंग...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

ख़त आ चुका, मुझसे है वही ढंग अब अब तलक
वैसा ही मिरे नाम से है नंग1 अब तलक

देखे है मुझको अपनी गली में तो फिर मुझे
वैसी ही गालियाँ हैं, वही संग2 अब तलक

आलम से की है सुलह मगर एक मेरे साथ
झगड़े वही अबस के3, वही जंग अब तलक

सुनता है जिस जगह वो मिरा ज़िक्र एक बार
भागे है वाँ4 से लाख ही फ़रसंग5 अब तलक

'सौदा' निकल चुका है वो हंगामे-नाज़ से6
पर मुझसे है अदा का वही रंग अब तलक

शब्दार्थ:
1. शर्म 2. पत्थर 3. व्यर्थ 4. वहाँ 5. दूरी की एक इकाई 6. नखरे के दौर से