भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"ख़िरद के पास ख़बर के सिवा कुछ और नहीं / इक़बाल" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) |
छो () |
||
(2 सदस्यों द्वारा किये गये बीच के 2 अवतरण नहीं दर्शाए गए) | |||
पंक्ति 1: | पंक्ति 1: | ||
− | + | {{KKGlobal}} | |
− | + | {{KKRachna | |
− | + | |रचनाकार=इक़बाल | |
− | + | }} | |
+ | {{KKCatGhazal}} | ||
+ | <poem> | ||
− | + | ख़िरद<ref>दिमाग </ref> के पास ख़बर के सिवा कुछ और नहीं | |
+ | तेरा इलाज नज़र के सिवा कुछ और नहीं | ||
− | + | हर इक मुक़ाम से आगे मुक़ाम है तेरा | |
− | + | हयात ज़ौक़-ए-सफ़र के सिवा कुछ और नहीं | |
− | + | रंगो में गर्दिश-ए-ख़ूँ है अगर तो क्या हासिल | |
− | हयात | + | हयात सोज़-ए-जिगर के सिवा कुछ और नहीं |
− | + | उरूस-ए-लाला मुनासिब नहीं है मुझसे हिजाब | |
− | + | कि मैं नसीम-ए-सहर के सिवा कुछ और नहीं | |
− | + | जिसे क़साद समझते हैं ताजरन-ए-फ़िरन्ग | |
− | + | वो शय मता-ए-हुनर के सिवा कुछ् और नहीं | |
− | + | गिराँबहा है तो हिफ़्ज़-ए-ख़ुदी से है वरना | |
− | + | गौहर में आब-ए-गौहर के सिवा कुछ और नहीं | |
− | |||
− | |||
− | + | </poem> | |
− | + | {{KKMeaning}} | |
− | < | + |
14:56, 8 नवम्बर 2009 के समय का अवतरण
ख़िरद<ref>दिमाग </ref> के पास ख़बर के सिवा कुछ और नहीं
तेरा इलाज नज़र के सिवा कुछ और नहीं
हर इक मुक़ाम से आगे मुक़ाम है तेरा
हयात ज़ौक़-ए-सफ़र के सिवा कुछ और नहीं
रंगो में गर्दिश-ए-ख़ूँ है अगर तो क्या हासिल
हयात सोज़-ए-जिगर के सिवा कुछ और नहीं
उरूस-ए-लाला मुनासिब नहीं है मुझसे हिजाब
कि मैं नसीम-ए-सहर के सिवा कुछ और नहीं
जिसे क़साद समझते हैं ताजरन-ए-फ़िरन्ग
वो शय मता-ए-हुनर के सिवा कुछ् और नहीं
गिराँबहा है तो हिफ़्ज़-ए-ख़ुदी से है वरना
गौहर में आब-ए-गौहर के सिवा कुछ और नहीं
शब्दार्थ
<references/>