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"ख़िरद के पास ख़बर के सिवा कुछ और नहीं / इक़बाल" के अवतरणों में अंतर

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हर इक मुक़ाम से आगे मुक़ाम है तेरा
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हर मुक़ाम से आगे मुक़ाम है तेरा<br>
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रंगो में गर्दिश-ए-ख़ूँ है अगर तो क्या हासिल
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जिसे क़साद समझते हैं ताजरन-ए-फ़िरन्ग<br>
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गिराँबहा है तो हिफ़्ज़-ए-ख़ुदी से है वरना
वो शय मता-ए-हुनर के सिवा कcउह्ह और नहीं<br><br>
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गौहर में आब-ए-गौहर के सिवा कुछ और नहीं
  
गिराँबहा है तो हिफ़्ज़-ए-ख़ुदी से है वरना<br>
 
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ख़िर्द=दिमाग़
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14:56, 8 नवम्बर 2009 के समय का अवतरण


ख़िरद<ref>दिमाग </ref> के पास ख़बर के सिवा कुछ और नहीं
तेरा इलाज नज़र के सिवा कुछ और नहीं

हर इक मुक़ाम से आगे मुक़ाम है तेरा
हयात ज़ौक़-ए-सफ़र के सिवा कुछ और नहीं

रंगो में गर्दिश-ए-ख़ूँ है अगर तो क्या हासिल
हयात सोज़-ए-जिगर के सिवा कुछ और नहीं

उरूस-ए-लाला मुनासिब नहीं है मुझसे हिजाब
कि मैं नसीम-ए-सहर के सिवा कुछ और नहीं

जिसे क़साद समझते हैं ताजरन-ए-फ़िरन्ग
वो शय मता-ए-हुनर के सिवा कुछ् और नहीं

गिराँबहा है तो हिफ़्ज़-ए-ख़ुदी से है वरना
गौहर में आब-ए-गौहर के सिवा कुछ और नहीं

शब्दार्थ
<references/>