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खा कर ज़ख़्म दुआ दी हमने / फ़रहत शहज़ाद
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खा कर ज़ख़्म दुआ दी हमने
बस यूँ उम्र बिता दी हमने
रात कुछ ऐसे दिल दुखता था
जैसे आस बुझा दी हमने
सन्नाटे के शहर में तुझको
बे-आवाज़ सदा दी हमने
होश जिसे कहती है दुनिया
वो दीवार गिरा दी हमने
याद को तेरी टूट के चाहा
दिल को ख़ूब सज़ा दी हमने
आ 'शह्ज़ाद' तुझे समझायें
क्यूँ कर उम्र गँवा दी हमने