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खिले हुए फूल / रवीन्द्र दास

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खिले हुए फूल

नहीं होते हैं मुस्कुराते हुए

होती है

हमारी मर्जी

उसका मुस्कुराना

जो हम कविता करते हैं

उनके चेहरे का

हर शिकन

नहीं होता प्रताड़ना का संकेत

लेकिन हम,

खड़े हो जाते हैं झंडा लेकर

आखिर करें भी दया!

संरक्षक होने का भाव मिटती ही नहीं !!