भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"खुदी और खुदा / शर्मिष्ठा पाण्डेय" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=शर्मिष्ठा पाण्डेय }} {{KKCatKavita}} <poem> पूछ...' के साथ नया पन्ना बनाया)
 
(कोई अंतर नहीं)

11:10, 3 अगस्त 2013 के समय का अवतरण

पूछा जो एक 'मुरीद' ने कभी अपने 'पीर' से
प्यारा है तुझको कौन 'वली' और मुरीद से
दिन-रात तुझसे तेरे ही गुर सीखता हूँ मैं
करता हूँ इबादत तुझे सराहता हूँ मैं
तेरे बताये रास्तों से चलता रहा मैं
बा-लफ्ज़,हर्फ़-हर्फ़ तुझको पढ़ता रहा मैं
फिर,क्यूँ न जान पाया हूँ तुझको मैं मुकम्मल
क्या रह गयी कमी है? या के दिल ही दूँ बदल
हौले से मुस्कराया पीर,मुतमईन था
फिर धीरे से उसने पुकारा सुन इधर 'वली'
तू कौन है? करता है क्यूँ खिदमत नयी नयी
क़दमों में गिर के ‘वली’ ने चूमा जो ‘पीर’ को
बोला के,तू और मैं कहाँ जुदा रहे कभी
ये खिदमतें,नवाज़िशें,बेलौस मोहतरम
तू मुझमें और मैं तुझमें फिर,काहे का भरम
ये सुना जो सर झुक गया ‘पीर-ए-मुरीद’ शपा
खुद को मिटा दे फ़कत जो,वही पायेगा खुदा