"खुला है झूठ का बाज़ार आओ सच बोलें / क़तील" के अवतरणों में अंतर
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− | खुला है | + | खुला है झूठ का बाज़ार आओ सच बोलें |
न हो बला से ख़रीदार आओ सच बोलें | न हो बला से ख़रीदार आओ सच बोलें | ||
− | सुकूत छाया है इंसानियत की क़द्रों पर | + | सुकूत<ref>ख़ामोशी</ref> छाया है इंसानियत की क़द्रों पर |
यही है मौक़ा-ए-इज़हार आओ सच बोलें | यही है मौक़ा-ए-इज़हार आओ सच बोलें | ||
हमें गवाह बनाया है वक़्त ने अपना | हमें गवाह बनाया है वक़्त ने अपना | ||
− | ब-नाम-ए-अज़मत-ए-किरदार आओ सच बोलें | + | ब-नाम-ए-अज़मत<ref>आन, उपाधि</ref>-ए-किरदार आओ सच बोलें |
− | सुना है वक़्त का हाकिम बड़ा ही मुंसिफ़ है | + | सुना है वक़्त का हाकिम<ref>शासक</ref> बड़ा ही मुंसिफ़<ref>निर्णायक</ref> है |
पुकार कर सर-ए-दरबार आओ सच बोलें | पुकार कर सर-ए-दरबार आओ सच बोलें | ||
तमाम शहर में क्या एक भी नहीं मंसूर | तमाम शहर में क्या एक भी नहीं मंसूर | ||
− | कहेंगे क्या रसन-ओ-दार आओ सच बोलें | + | कहेंगे क्या रसन-ओ-दार<ref>रस्सी और फंदा</ref> आओ सच बोलें |
− | बजा के ख़ू-ए-वफ़ा एक भी हसीं में नहीं | + | बजा<ref>न्याय संगत, उचित</ref> के ख़ू-ए-वफ़ा<ref>स्थिरता की आदत</ref> एक भी हसीं में नहीं |
कहाँ के हम भी वफ़ा-दार आओ सच बोलें | कहाँ के हम भी वफ़ा-दार आओ सच बोलें | ||
− | जो वस्फ़ हम में नहीं क्यूँ करें किसी में तलाश | + | जो वस्फ़<ref>गुण, विशेषता</ref> हम में नहीं क्यूँ करें किसी में तलाश |
अगर ज़मीर है बेदार आओ सच बोलें | अगर ज़मीर है बेदार आओ सच बोलें | ||
छुपाए से कहीं छुपते हैं दाग़ चेहरे के | छुपाए से कहीं छुपते हैं दाग़ चेहरे के | ||
− | नज़र है आईना | + | नज़र है आईना बरदार<ref>धारक</ref> आओ सच बोलें |
'क़तील' जिन पे सदा पत्थरों को प्यार आया | 'क़तील' जिन पे सदा पत्थरों को प्यार आया | ||
किधर गए वो गुनह-गार आओ सच बोलें | किधर गए वो गुनह-गार आओ सच बोलें | ||
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03:17, 12 जुलाई 2016 के समय का अवतरण
खुला है झूठ का बाज़ार आओ सच बोलें
न हो बला से ख़रीदार आओ सच बोलें
सुकूत<ref>ख़ामोशी</ref> छाया है इंसानियत की क़द्रों पर
यही है मौक़ा-ए-इज़हार आओ सच बोलें
हमें गवाह बनाया है वक़्त ने अपना
ब-नाम-ए-अज़मत<ref>आन, उपाधि</ref>-ए-किरदार आओ सच बोलें
सुना है वक़्त का हाकिम<ref>शासक</ref> बड़ा ही मुंसिफ़<ref>निर्णायक</ref> है
पुकार कर सर-ए-दरबार आओ सच बोलें
तमाम शहर में क्या एक भी नहीं मंसूर
कहेंगे क्या रसन-ओ-दार<ref>रस्सी और फंदा</ref> आओ सच बोलें
बजा<ref>न्याय संगत, उचित</ref> के ख़ू-ए-वफ़ा<ref>स्थिरता की आदत</ref> एक भी हसीं में नहीं
कहाँ के हम भी वफ़ा-दार आओ सच बोलें
जो वस्फ़<ref>गुण, विशेषता</ref> हम में नहीं क्यूँ करें किसी में तलाश
अगर ज़मीर है बेदार आओ सच बोलें
छुपाए से कहीं छुपते हैं दाग़ चेहरे के
नज़र है आईना बरदार<ref>धारक</ref> आओ सच बोलें
'क़तील' जिन पे सदा पत्थरों को प्यार आया
किधर गए वो गुनह-गार आओ सच बोलें