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"खुली-खुली-सी खिड़कियाँ, लुटी-लुटी-सी बस्तियाँ / गुलाब खंडेलवाल" के अवतरणों में अंतर

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कहाँ है प्यार की क़सम! कहाँ हो तुम, कहाँ हैं हम!
 
कहाँ है प्यार की क़सम! कहाँ हो तुम, कहाँ हैं हम!
ढलान पर क़दम-क़दम, उतर रहा है कारवां
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ढलान पर क़दम-क़दम, उतर रहा है कारवाँ
  
 
मिलो न चाहे उम्र भर, मगर हो दिल के हमसफ़र
 
मिलो न चाहे उम्र भर, मगर हो दिल के हमसफ़र
जली न आग जो उधर, उठा कहाँ से यह धुँआ
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जली न आग जो उधर, उठा कहाँ से यह धुआँ
  
 
कभी जो उनकी एक झलक, नज़र से थी गयी छलक
 
कभी जो उनकी एक झलक, नज़र से थी गयी छलक
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गुलाब! अब भी डाल पे, भले ही तुम हो खिल रहे
 
गुलाब! अब भी डाल पे, भले ही तुम हो खिल रहे
कहाँ हैं सुर बहार के! कहां हैं उनकी शोख़ियाँ
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कहाँ हैं सुर बहार के! कहाँ हैं उनकी शोख़ियाँ
 
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02:00, 9 जुलाई 2011 के समय का अवतरण


खुली-खुली-सी खिड़कियाँ, लुटी-लुटी-सी बस्तियाँ
बसे थे जो कभी यहाँ, गए वे छोड़कर कहाँ!

कहाँ है प्यार की क़सम! कहाँ हो तुम, कहाँ हैं हम!
ढलान पर क़दम-क़दम, उतर रहा है कारवाँ

मिलो न चाहे उम्र भर, मगर हो दिल के हमसफ़र
जली न आग जो उधर, उठा कहाँ से यह धुआँ

कभी जो उनकी एक झलक, नज़र से थी गयी छलक
उसीकी धुन में आज तक, फिरे हैं हम जहाँ-तहाँ

गुलाब! अब भी डाल पे, भले ही तुम हो खिल रहे
कहाँ हैं सुर बहार के! कहाँ हैं उनकी शोख़ियाँ