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Kavita Kosh से
कहाँ है प्यार की क़सम! कहाँ हो तुम, कहाँ हैं हम!
ढलान पर क़दम-क़दम, उतर रहा है कारवांकारवाँ
मिलो न चाहे उम्र भर, मगर हो दिल के हमसफ़र
जली न आग जो उधर, उठा कहाँ से यह धुँआधुआँ
कभी जो उनकी एक झलक, नज़र से थी गयी छलक
गुलाब! अब भी डाल पे, भले ही तुम हो खिल रहे
कहाँ हैं सुर बहार के! कहां कहाँ हैं उनकी शोख़ियाँ
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