भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"खुल के आओ तो कोई बात बने / गुलाब खंडेलवाल" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Vibhajhalani (चर्चा | योगदान) |
|||
पंक्ति 8: | पंक्ति 8: | ||
खुलके आओ तो कोई बात बने | खुलके आओ तो कोई बात बने | ||
− | + | रुख़ मिलाओ तो कोई बात बने | |
हमने माना कि प्यार है हमसे | हमने माना कि प्यार है हमसे |
00:37, 2 जुलाई 2011 के समय का अवतरण
खुलके आओ तो कोई बात बने
रुख़ मिलाओ तो कोई बात बने
हमने माना कि प्यार है हमसे
मुँह पे लाओ तो कोई बात बने
बात क्या राह में बनेगी भला!
घर पे आओ तो कोई बात बने
रात गीतों की और ऐसे तार!
सुर मिलाओ तो कोई बात बने
यों तो बातें बना रहे हैं गुलाब
तुम बनाओ तो कोई बात बने