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"खुशबू से जो नाता (माहिया) / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’" के अवतरणों में अंतर

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आदिनाथ शास्त्री
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तुम हो खुशबू मन की
 
तुम हो खुशबू मन की
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प्यार किसे कहते
 
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हरगिज़ ना जानेंगे  
 
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23:27, 24 फ़रवरी 2021 का अवतरण

87
तुमको मन आँगन दूँ
छोड़ नहीं जाना
निर्मल तन दर्पन दूँ।
88
यह चन्दन सी काया
रोम रोम महका
जब तुझको पाया।
89
अब तो तुम आ जाओ
साँसें हैं व्याकुल
जीवन बन छा जाओ।
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(27 जुलाई 20)
90
तुम हो खुशबू मन की
तुमसे जीवन है
साँसें तुम हो तन की।
91
कितना है दर्द सहा!
जीवन में तुमने
फिर भी तो उफ़ न कहा।
92
दो पल तुमको देखा
घोर घनी रजनी
चमकी विद्युत रेखा।
93
नयनों में दर्द दिखा
लब पर दर्द वही
आकर के आज टिका।
94
खुशबू से जो नाता
वह तुमको छूकर
मुझ तक फिर आता।
95
वे लोग न मानेंगे
प्यार किसे कहते
हरगिज़ ना जानेंगे
96
बोझिल तेरे नैना
मैं जागूँ यूँ ही
बीतेगी ये रैना।
-0-