भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"खोला द्वार / कविता भट्ट" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= कविता भट्ट |संग्रह= }} Category: ताँका...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
 
पंक्ति 7: पंक्ति 7:
 
<poem>
 
<poem>
  
 
+
14
 
+
'''खोला द्वार यूँ'''
 
+
बोझिल पलकों से,
 
+
नशे में चूर
 +
कदमों के लिए भी,
 +
मंदिर के जैसे ही।
 +
15
 +
टूटना-पीड़ा
 +
उससे भी अधिक
 +
पीड़ादायी है
 +
टूटने-जुड़ने का
 +
विवश सिलसिला
 +
16
 +
घृणा ही हो तो
 +
जी सकता है कोई
 +
जीवन अच्छा
 +
किन्तु बुरा है होता
 +
प्रेम का झूठा भ्रम
 +
17
 +
तोड़ते नहीं
 +
शीशा,तो क्या करते
 +
सह न सके
 +
दर्द-भरी झुर्रियाँ
 +
किसी का उपहास
 +
18
 +
भरी गागर
 +
मेरी आँखों की प्रिय
 +
कुछ कहती,
 +
जीवन पीड़ा सहती
 +
लज्जित, न बहती
 +
19
 +
एक डोरी हो-
 +
जिस पर फैलाऊँ
 +
रंग-बिरंगे
 +
उजले-नीले-पीले
 +
सतरंगी सपने ।
 +
20
 +
रजनीगंधा
 +
रात के पृष्ठों पर
 +
तुम करती
 +
खुशबू बिखेरते
 +
सशक्त हस्ताक्षर ।
 +
-०-
 
</poem>
 
</poem>

01:57, 30 जून 2018 के समय का अवतरण


14
खोला द्वार यूँ
बोझिल पलकों से,
नशे में चूर
कदमों के लिए भी,
मंदिर के जैसे ही।
15
टूटना-पीड़ा
उससे भी अधिक
पीड़ादायी है
टूटने-जुड़ने का
विवश सिलसिला
16
घृणा ही हो तो
जी सकता है कोई
जीवन अच्छा
किन्तु बुरा है होता
प्रेम का झूठा भ्रम
17
तोड़ते नहीं
शीशा,तो क्या करते
सह न सके
दर्द-भरी झुर्रियाँ
किसी का उपहास
18
भरी गागर
मेरी आँखों की प्रिय
कुछ कहती,
जीवन पीड़ा सहती
लज्जित, न बहती
19
एक डोरी हो-
जिस पर फैलाऊँ
रंग-बिरंगे
उजले-नीले-पीले
सतरंगी सपने ।
20
रजनीगंधा
रात के पृष्ठों पर
तुम करती
खुशबू बिखेरते
सशक्त हस्ताक्षर ।
-०-