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"खो गया था राहबर मेरे बग़ैर / रविंदर कुमार सोनी" के अवतरणों में अंतर

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खो गया था राहबर मेरे बग़ैर
 
खो गया था राहबर मेरे बग़ैर
 
किस को थी इतनी ख़बर मेरे बग़ैर
 
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कुश्ता ए ज़ुल्मत था मैं ही दहर में
 
कुश्ता ए ज़ुल्मत था मैं ही दहर में
 
क्यूँ हुई या रब सहर मेरे बग़ैर
 
क्यूँ हुई या रब सहर मेरे बग़ैर
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मेरे होते थे यही बर्ग ओ शजर
 
मेरे होते थे यही बर्ग ओ शजर
 
हैं वही शम्स ओ क़मर मेरे बग़ैर
 
हैं वही शम्स ओ क़मर मेरे बग़ैर
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अब कहाँ वो लुत्फ़ ए तूलानी ए शब
 
अब कहाँ वो लुत्फ़ ए तूलानी ए शब
 
दास्ताँ है मुख़्तसर मेरे बग़ैर
 
दास्ताँ है मुख़्तसर मेरे बग़ैर
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तेरा नाला, बुलबुल ए शोरीदा सर
 
तेरा नाला, बुलबुल ए शोरीदा सर
 
किस तरह करता असर मेरे बग़ैर
 
किस तरह करता असर मेरे बग़ैर
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जो रहा करता था मेरे साथ साथ
 
जो रहा करता था मेरे साथ साथ
 
फिर रहा है दर बदर मेरे बग़ैर
 
फिर रहा है दर बदर मेरे बग़ैर
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वीराँ वीराँ गलियाँ, उजड़े उजड़े घर
 
वीराँ वीराँ गलियाँ, उजड़े उजड़े घर
 
सूने सूने हैं नगर मेरे बग़ैर
 
सूने सूने हैं नगर मेरे बग़ैर
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साज़ हैं टूटे हुए, नग़मे उदास
 
साज़ हैं टूटे हुए, नग़मे उदास
 
चुप हैं अब दीवार ओ दर मेरे बग़ैर
 
चुप हैं अब दीवार ओ दर मेरे बग़ैर
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रहरवान ए वक़्त से पूछ ऐ रवि
 
रहरवान ए वक़्त से पूछ ऐ रवि
 
जा रहे हैं अब किधर मेरे बग़ैर
 
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15:33, 25 फ़रवरी 2012 का अवतरण

खो गया था राहबर मेरे बग़ैर
किस को थी इतनी ख़बर मेरे बग़ैर

कुश्ता ए ज़ुल्मत था मैं ही दहर में
क्यूँ हुई या रब सहर मेरे बग़ैर

मेरे होते थे यही बर्ग ओ शजर
हैं वही शम्स ओ क़मर मेरे बग़ैर

अब कहाँ वो लुत्फ़ ए तूलानी ए शब
दास्ताँ है मुख़्तसर मेरे बग़ैर

तेरा नाला, बुलबुल ए शोरीदा सर
किस तरह करता असर मेरे बग़ैर

जो रहा करता था मेरे साथ साथ
फिर रहा है दर बदर मेरे बग़ैर

वीराँ वीराँ गलियाँ, उजड़े उजड़े घर
सूने सूने हैं नगर मेरे बग़ैर

साज़ हैं टूटे हुए, नग़मे उदास
चुप हैं अब दीवार ओ दर मेरे बग़ैर

रहरवान ए वक़्त से पूछ ऐ रवि
जा रहे हैं अब किधर मेरे बग़ैर