भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

गर्मी आई / शिवराज भारतीय

Kavita Kosh से
आशिष पुरोहित (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 16:44, 6 दिसम्बर 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=शिवराज भारतीय |संग्रह=रंग लुटाती वर्षा आई / शिवर…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


गर्मी आई गर्मी आई
पंखे कूलर कुल्फी लाई।

सूरज दादा लगे भड़कने
धूप करारी लगी कड़कने,
दरखत की छाया मन भाई
गर्मी आई गर्मी आई

सूनी सड़कें सूनी गलियाँ
बंद दरवाजे खुली खिड़कियाँ,
दोपहरी में बंद घुमाई
गर्मी आई गर्मी आई।
बाहर जाना ही आफत है
घर के अन्दर कुछ राहत है,
बिन बिजली सांसें घबराई
गर्मी आई गर्मी आई।

अमरस शरबत और ठण्डाई
आईसक्रीम सबके मन भाई
‘कुल्फी लूं’ मुन्नी चिल्लाई
गर्मी आई गर्मी आई।