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ग़ज़ल मेरी तो मेरा आइना है / कैलाश झा 'किंकर'
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ग़ज़ल मेरी तो मेरा आइना है
बहुत नाज़ुक है छूना भी मना है।
चमक उठती हैं चीजें भी नज़र में
जो पत्थर है वह मेरा आशना है।
गुज़र जाएगी आँधी बिन बिगाड़े
बड़ी मेहनत से मेरा घर बना है।
कहाँ तक साथ कोई दे सकेगा
मुझे भी रास्ता तो नापना है।
अहं की आग में जो जल रहे हैं
उन्हें भी कुछ न कुछ तो यातना है।
कहाँ तक भागते-फिरते रहोगे
यहीं कर्मों के फल को भोगना है।