भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

ग़लतियों का जब सुधार कर लिया / महावीर प्रसाद ‘मधुप’

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 03:56, 17 जून 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=महावीर प्रसाद 'मधुप' |अनुवादक= |संग...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

ग़लतियों का जब सुधार कर लिया
दर्द का समुद्र पर कर लिया

भूल इतनी हो गई हम से फ़क़त
दोस्तों का एतबार कर लिया

हो नहीं उन पर सका कोई असर
हर निवेदन बार-बार कर लिया

क़ामयाबी ख़्वाब बन कर रह गई
बेवफ़ा को राज़दार कर लिया

फूल काँटों को समझ कर क्या मिले
अपना दामन तार-तार कर लिया

क्या ख़बर थी आस्तीं के साँप हैं
आ गए बातों में प्यार कर लिया

दास्तां उनके ग़मों की क्या सुनी
दिल को अपने बेक़रार कर लिया

मिट गए पिछले गिले-शिक़वे सभी
दूर जब दिल का गुबार कर लिया

किस तरह होती हिफ़ाज़त माल की
दस्यु दल को मद्दगार कर लिया

हर क़दम पर चाल उनकी देख कर
ख़ुद को हमने ख़बरदार कर लिया

ज़िन्दगी भर का बना कर हमसफ़र
दर्दे-दिल को बरक़रार कर लिया

बाद मरने के खुली आँखें रहीं
उम्र भर जब इन्तज़ार कर लिया

‘मधुप’ अपने भी पराए हो गए
सत्य का जब से विचार कर लिया