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"ग़ालिब / परिचय" के अवतरणों में अंतर

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मिर्ज़ा असद-उल्लाह ख़ां उर्फ “'''ग़ालिब'''” (27 दिसंबर 1796 – 15 फरवरी 1869) उर्दू एवं फ़ारसी भाषा के महान शायर थे।
 
मिर्ज़ा असद-उल्लाह ख़ां उर्फ “'''ग़ालिब'''” (27 दिसंबर 1796 – 15 फरवरी 1869) उर्दू एवं फ़ारसी भाषा के महान शायर थे।
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===जन्म और परिवार===
 
===जन्म और परिवार===
ग़ालिब का जन्म आगरा मे एक सैनिक पृष्ठभूमि वाले परिवार में हुआ था । उन्होने अपने पिता और चाचा को बचपन मे ही खो दिया था, ग़ालिब का जिवनयापन मुलत: अपने चाचा के मरनोपरांत मिलने वाले पेंशन से होता था (वो ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी  मे सैन्य अधिकारी थे) । <ref>[http://www.columbia.edu/itc/mealac/pritchett/00ghalib/about/about_project.html?nagari ग़ालिब एक परिचय]</ref>
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ग़ालिब का जन्म आगरा मे एक सैनिक पृष्ठभूमि वाले परिवार में हुआ था । उन्होने अपने पिता और चाचा को बचपन मे ही खो दिया था, ग़ालिब का जिवनयापन मुलत: अपने चाचा के मरनोपरांत मिलने वाले पेंशन से होता था (वो ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी  मे सैन्य अधिकारी थे) ।
  
 
===शिक्षा===
 
===शिक्षा===
ग़ालिब की प्रारम्भिक शिक्षा के बारे मे स्पष्टतः कुछ कहाँ नहीं जा सकता लेकिन ग़ालिब के अनुसार उन्होने 12 वर्ष की अवस्था से ही उर्दू एवं फ़ारसी मे गद्य तथा पद्य लिखने आरम्भ कर दिया था । <ref>[http://www.columbia.edu/itc/mealac/pritchett/00ghalib/046/46_06.html?nagari#ghalib_2 खलिक़ अनजुम]</ref>
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ग़ालिब की प्रारम्भिक शिक्षा के बारे मे स्पष्टतः कुछ कहाँ नहीं जा सकता लेकिन ग़ालिब के अनुसार उन्होने 12 वर्ष की अवस्था से ही उर्दू एवं फ़ारसी मे गद्य तथा पद्य लिखने आरम्भ कर दिया था ।
  
 
===वैवाहिक जीवन===
 
===वैवाहिक जीवन===
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==कार्यक्षेत्र==
 
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==संदर्भ==
 
<references />
 
 
==बाहरी कड़ियाँ==
 
 
*[http://www.columbia.edu/itc/mealac/pritchett/00ghalib/ghazal_index.html?nagari दीवान-ए-ग़ालिब]
 

16:15, 11 जनवरी 2009 का अवतरण

“हैं और भी दुन्‌या में सुख़न्‌वर बहुत अच्‌छे
कह्‌ते हैं कि ग़ालिब का है अन्‌दाज़-ए बयां और”


मिर्ज़ा असद-उल्लाह ख़ां उर्फ “ग़ालिब” (27 दिसंबर 1796 – 15 फरवरी 1869) उर्दू एवं फ़ारसी भाषा के महान शायर थे।

सुबह का झटपटा, चारों तरफ़ अँधेरा, लेकिन उफ़्क़ पर थोङी सी लाली। यह क़िस्सा दिल्ली का, सन १८६७ ईसवी, दिल्ली की तारीख़ी इमारतें। पराने खण्डहरात। सर्दियों की धुंध - कोहरा - ख़ानदान - तैमूरिया की निशानी लाल क़िला - हुमायूँ का मकबरा - जामा मस्जिद।

एक नीम तारीक कूँचा, गली क़ासिम जान - एक मेहराब का टूटा सा कोना -

दरवाज़ों पर लटके टाट के बोसीदा परदे। डेवढी पर बँधी एक बकरी - धुंधलके से झाँकते एक मस्जिद के नकूश। पान वाले की बंद दुकान के पास दिवारों पर पान की पीक के छींटे। यही वह गली थी जहाँ ग़ालिब की रिहाइश थी। उन्हीं तसवीरों पर एक आवाज़ उभरती है -

बल्ली मारां की वो पेचीदा दलीलों की सी गलियाँ
सामने टाल के नुक्कङ पे बटेरों के क़सीदे
गुङगुङाते हुई पान की वो दाद-वो, वाह-वा
दरवाज़ों पे लटके हुए बोसिदा से कुछ टाट के परदे
एक बकरी के मिमयाने की आवाज़ !
और धुंधलाई हुई शाम के बेनूर अँधेरे
ऐसे दीवारों से मुँह जोङ के चलते हैं यहाँ
चूङी वालान के कङे की बङी बी जैसे
अपनी बुझती हुई सी आँखों से दरवाज़े टटोले
इसी बेनूर अँधेरी सी गली क़ासिम से
एक तरतीब चिराग़ॊं की शुरू होती है
एक क़ुराने सुख़न का सफा खुलता है
असद उल्लाह ख़ान ग़ालिब का पता मिलता है।

जीवन परिचय

जन्म और परिवार

ग़ालिब का जन्म आगरा मे एक सैनिक पृष्ठभूमि वाले परिवार में हुआ था । उन्होने अपने पिता और चाचा को बचपन मे ही खो दिया था, ग़ालिब का जिवनयापन मुलत: अपने चाचा के मरनोपरांत मिलने वाले पेंशन से होता था (वो ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी मे सैन्य अधिकारी थे) ।

शिक्षा

ग़ालिब की प्रारम्भिक शिक्षा के बारे मे स्पष्टतः कुछ कहाँ नहीं जा सकता लेकिन ग़ालिब के अनुसार उन्होने 12 वर्ष की अवस्था से ही उर्दू एवं फ़ारसी मे गद्य तथा पद्य लिखने आरम्भ कर दिया था ।

वैवाहिक जीवन

13 वर्ष की आयु मे उनका विवाह हो गया था । विवाह के बाद वह दिल्ली आ गये थे जहाँ उनकि तमाम उम्र बिती । अपने पेंशन के सिलसिले मे उन्हें कोलकाता कि लम्बी यत्रा भी करनी परी थी, जिसका जिक्र उनकी गजलो मे जगह – जगह पर मिलता है ।

कार्यक्षेत्र