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गामक लोक नगरमे प्रायः पैर धरिते डूबि चाइछ जखन / कुलानन्द मिश्र

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जखन
कदवा-पखार धन-रोप समाप्त भ’ जाइत छल
आँगने-आँगन भगवतीकें
दूधक खीर आ चारू कात पाकल आम संग
सजल-सफल आर्द्रा मध्य
कृतार्थ आ कृतज्ञ गृहवासी दिससँ
पातड़ि देल जाइत छल
ओहने कोनो दिन हमर पितामह
अपना हरवाहक निहोरा पर
सलहेसक सिंगारक खर्च
किछु कृपा-भाव
किछु आदर-आवेश संग गछि लैत छलाह
ओ फेर कोनो दिन लगक गामसँ पुरहितकें बजा
भागवतक नवाहक ओरिआओनमे
निष्ठापूर्वक लागि जाइत छलाह
टोल भरिक लोककें
ई सभ बात मोन हेतैक

जखन
खेतक खेत
धानक बालिमे दूध भरि जाइत रहैक
आ कोनो-कोनो अगता खेत
चउरा सेहो जाइत छल
हमर सत्तरि बरखक बूढ़ि मैयाँ
रतिगरे उठा दैत छलीह छठिक गीत
आ फेर टोल भरिक जाँतक स्वर संग
दाइ-माइ-मनाइन आ मैयाँक औंघाएल स्वर
कातिकक निष्कलुष धवल पक्षक
निशाशेषक शीतल निस्तब्धतामे
गामक सीमा टपि
निन्नमे पड़ल बाधकें थपकी दैत छल
हमरा तूरक बहुतो गोटेकें
ई बात सभ बिसल नहि छैक

जखन
ठिठुरल जाड़क संवेदनाहीन आकाससँ
उदारतापूर्वक पड़ल पाल पर
बीघाक बीघा खेसारीक खेत
पिटा क’ झामर भ’ जाइत छल
ओहन कातोक पुण्यप्रद माघ मासक
जमल रातिक अंतिम प्रहरमे
अपन समस्त सखा-संतानक
निरापद भविष्यक एकान्त कामना संग
पोखरिमे डूब द’
हमर एकवस्त्रा माइ
लोमहर्षिता-कम्पितगाता
आँगन घुरैत छलीह
आ घरक जेठि हमर बड़की बहिन
बोरसीक करसी पर मटिया तेल ढारि
तकरा लगले लहका दैत छलीक
आ फेर माइक संग पुरैत
हुनकासँ सटि क’ बैसलि
ओ माइकें घुरैत रहैत छलीह
स्वप्नक गरिमा संग बीतल ओ दिन सभ
हमरा सभ भाइ-बहिनिक लेल
बिसरब कष्टप्रद थीक।

जखन
अपन पिता-पितामहक अरजल
तीन बीघा चारि कठा जमीनक
आठ टुकड़ामे बँटाएल खेतमे
हरवाह द्वारा मेहनतिसँ जोतल
आ बुधियारीसँ सम्हारल गेल खेतमे
सोनापत्ती मकइक जोगा क’ राखल बीआ
हर पर धरिआ क’
सप्ताहान्तरे बाओग अपन समाप्त क’
हमर पिता काजसँ निचैन होइत छलाह
त’ अपन मीतसँ माँगल
छागरक खाल ल’ क’ ओ
परूकाँ सालक फूटल डम्फकें छड़ाबए
चमरटोली दिस विदा भ’ जाइत छलाह
नकबेसर ल’ क’ भागल कागकें
मधुर स्वरमे उपालम्भ दैत
कि दलान पर दूधमे घोराएल भाँगक बाल्टीसँ
लोटा भरि भाँग आँगन पठबैत हमर पिता
ककरो मोन रहबा जोगर लोक छलाह
मुदा
लक्ष्मीनारायणक मन्दिर लग
रिक्शा सँ फुर्तीसँ उतरि
सड़कक कातेमे ठाढ़ि भ’
लक्ष्मी आ नारायणक युगल मूर्तिकें
हड़बड़ाएले माथ नबौनिहारी हमर पत्नी
माघ नहएबाक बात कहियो नहि सोचैत छथि
रेडियो आ टी.वी.सँ ठुमरी सुननिहारि
हमर कल्याणी बेटी आ लक्ष्मी पात्र पुतहुकें
छठिक गीतक भास उचिते नहि अबैत छनि

आ बिनु चेफड़ीक पैण्ट
कि एक जोड़ धोअल कमीजक
सुरक्षित आमद लेल
मासिक आयक तन्नुक डोरसँ बान्हल
हमर सरकारी कैलेण्डर छाप दिनचर्यामे
छठि आ फगुआ त’
समय पर कहुना पहुँचि जाइत अछि,
मुदा आर्द्राक नक्षत्र
बिनु गमने गुजरि जाइछ चुपचाप

भागवत सुनबाक पलखति हमरा नहि भेटल
डम्फ बजाएब हम कहियो नहि जानल
आ सलहेसक सिंगार
आब गामेमे के करैत अछि
तखन मेष संक्रान्ति अबिते रमणी धानक चूड़ा

आ गुजराती महीसक छल्हिगर दही लेल
मोन अखनो आफनि धुनैत अछि
अखनो मोन पड़ैत अछि
कंचनिया माइक लाइ आ झिल्ली
कि दलानक पाछाँमे जिराइत
केरबी आम गाछसँ
चोरा क’ टपकल गोपी
गजलक पाँती गुन-गुनबैत हमरा
विद्यापतिक उदासी-समदाउन आ नचारी
धक् द’ मोन पड़ि जाइत अछि
पाँच सितारा ‘मौर्या’क
दहकैत ‘अंगारा’सँ बेसुध बहराइत काल
पढुआ ककाक दलान पर नित्यशः
सँझका पहर घोराइत
बिनु चीनीक भाँगक स्मरण अबैत अछि
आ हम होशमे आबए लगैत छी

हमरा लगैत अछि-
गामसँ पड़ाएल लोक नगरमे प्रवासी होइछ
ओकरा अन्तरमे हाहाकार आ भंगिमामे उदासी होइछ
नगरक लोक गाममे किछुए दिनमे ऊबि जाइछ
गामक लोक नगरमे प्रायः पैर धरिते डूबि जाइछ