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गीत 11 / चौथा अध्याय / अंगिका गीत गीता / विजेता मुद्गलपुरी
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हय अभेद दर्शन यग विधि छिक, हे अर्जुन अपनावोॅ
अपना के तों हव्य मानि, ईश्वर के अग्नि, पतियावोॅ।
अग्नि के छिक सहज स्वभाव
ऊ सब के अग्नि बनावै
खुद के अर्पित करै जीव
सारूप्य ब्रह्म के पावै
तन के सब अज्ञान नासि ‘सोह्म’ शरीर के पावोॅ
हय अभेद दर्शन यग विधि छिक, हे अर्जुन अपनावोॅ।
कुछ योगी समस्त विषय
इन्द्रिय में हवन करै छै
कुछ योगी इन्द्रिय समस्त
संयम से हवन करै छै
शब्द-रूप-रस-गंध-परम सब संयम से समुझावोॅ
हय अभेद दर्शन यग विधि छिक, हे अर्जुन अपनावोॅ।
इन्द्रिय के सम्पूर्ण क्रिया
संयम के करोॅ समर्पित
और प्राण के पूर्ण क्रिया
तों करोॅ ज्ञान के अर्पित
आतम-संयम-योगाग्नि जरि सहज समाधि पावोॅ
हय अभेद दर्शन यग विधि छिक, हे अर्जुन अपनावोॅ।