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गीत 14 / छठा अध्याय / अंगिका गीत गीता / विजेता मुद्‍गलपुरी

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योगी जगत ब्रह्ममय पावै
एक ब्रह्म में सब जग देखै, समदर्शी कहलावै।

एक सच्चिदानन्द ब्रह्म में परम तत्त्व के पावै
सद्व्यवहार करै सब के संग एकि भाव अपनावै
एकरा से नै भिन्न जगत कुछ नित अनुभव में लावै
योगी जगत ब्रह्ममय पावै।

जे जग के प्राणी-प्राणी में वासुदेव के जानै
वासुदेव के ही जग के हर प्राणी में पहचानै
उनके लेली हम सदृश्य छी, से हमरोॅ कहलावै
योगी जगत ब्रह्ममय पावै।

जेना गगन में मेघ, मेघ में गगन रहै छै जानोॅ
वैसे जग में ब्रह्म, ब्रह्म में पूर्ण जगत पहचानोॅ
महासुन्य आकाश तत्त्व ही पंचतत्त्व उपजावै
योगी जगत ब्रह्ममय पावै।

जैसें एक चतुर बहुरूपिया विविध रूप के धरै
लेकिन उनकर सही नाम से परिजन सदा पुकारै
वैसें जोगी जीव ब्रह्म में कुद नै भेद बतावै
योगी जगत ब्रह्ममय पावै।