भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"गीत 2 / तेरहवां अध्याय / अंगिका गीत गीता / विजेता मुद्‍गलपुरी" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=विजेता मुद्‍गलपुरी |अनुवादक= |संग...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
(कोई अंतर नहीं)

01:28, 18 जून 2016 के समय का अवतरण

हे अर्जुन क्षेत्रज्ञ हम्हीं छी
सब विकार से रहित प्रकृति हम, पावन प्रज्ञ हम्हीं छी।

सुनोॅ, क्षेत्र जौने जैसन छै, जे विकार वाला छै
जे कारण से जुरल होल छै, जे प्रभाव वाला छै
से सब कुछ संक्षेप में कहवोॅ, व्यापक-विज्ञ हम्हीं छी
हे अर्जुन क्षेत्रज्ञ हम्हीं छी।

क्षेत्र और क्षेत्रज्ञ तत्त्व के बहुविधि ऋषिगण गैलन
विविध वेद मंत्रों मंे जेकरा विविध विभाग बतैलन
ब्रह्म-सूत्र जे उक्ति बतैलक से मर्मज्ञ हम्हीं छी
हे अर्जुन क्षेत्रज्ञ हम्हीं छी।

हे अर्जुन, हम मूल प्रकृति छी, सब से पहिने जानोॅ
जानोॅ, पाँचो महाभूत, चित-अहंकार छी मानोॅ
दस इन्द्रिय, मन, विषय अंग के, अन्तः यग हम्हीं छी
हे अर्जुन क्षेत्रज्ञ हम्हीं छी।