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गीत 5 / तेरहवां अध्याय / अंगिका गीत गीता / विजेता मुद्‍गलपुरी

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ज्ञानी, प्रिय-अप्रिय जन लेली हरदम एक समान रहै
जग से ममता मोह न राखै हरदम हमरोॅ ध्यान रहै।

ज्ञानी, पुत्र-स्त्री-घर-धन से
आसक्ति के भाव न राखै,
केकरा सँग दुराव न राखै,
रखै अनन्य भक्ति हमरा में, और अलौकिक ज्ञान रहै।

कोलाहल से दूर
भीड़ से अलग रहै, अरु ध्यान करै जे,
आपत्ति अरु क्षोभ न राखै
चिन्मय वातावरण करै जे,
वातावरण स्वच्छ निरमावै, दुर्गम के आसान करै।

हिंसक के जे करै अहिंसक
शुभ चरित्र निर्माण करै जे,
नित अध्यातम ज्ञान में स्थित
तत्त्व ज्ञान संधान करै जे,
इहेॅ ज्ञान छिक जानोॅ अर्जुन, सब दिश एक समान रहै।

सब परिवर्तनशील वस्तु के
सदा अनातम संत कहै छै,
पूर्ण ब्रह्म सच्चिदानन्द के
तत्त्व ज्ञान सब लोग कहै छै,
एकरा से विपरीत भाव के, संत सिनी अज्ञान कहै
ज्ञानी, प्रिय-अप्रिय जन लेली हरदम एक समान रहै।