भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
गीत 6 / नौवाँ अध्याय / अंगिका गीत गीता / विजेता मुद्गलपुरी
Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 01:04, 18 जून 2016 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=विजेता मुद्गलपुरी |अनुवादक= |संग...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
हमरे परम प्रभाव से प्रकृति सौंसे जगत रचै छै
इहै लेल संसार-चक्र, हे अर्जुन सदा घुमै छै
पूर्ण प्रकृति के गति दै वाला
हम्हीं अधिष्ठाता छी,
हमरे प्रकृति जगत रचै छै
हम स्फूर्ति दै छी,
जैसें एक किसान बीज के संकल्पित करवै छै।
शुभ प्रभाव से प्रकृति
जड़-चेतन संयोग करै छै,
भाँति-भाँति के योनी में
उत्पन्न बहु-जीव करै छै,
हम किसान छी, और प्रकृति धरती के काज करै छै।
हमरोॅ परम प्रभाव न जानै
से जन मूढ़ कहावै
मानव तन पावी केॅ भी
हमरोॅ प्रभाव नै पावै,
ऊ हमरे सिरजल, हमरे सिरजन पर प्रश्न उठावै
हमरे परम प्रभाव से प्रकृति सौंसे जगत रचै छै।