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घनाक्षरी / मिलन मलरिहा

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नदि नाला जंगल ले, उपजे गांव गांव ह
::::रुखराई जीवजन्तु, आज तै सवार रे।
 
:::::::(3)
बोस तै महान गा (घनाक्षरी)
::::::माटी के मान खातिर, देस के सान खातिर
हिंद सेना गढ़ डारे, बोस तै महान गा
::::::खून मोला देवा सबो, मैंहा तो आजादी देहुँ
नारा देके गाव-गली, खोजे तै जवान गा
::::::खेतखारे तैहा जाके, कहे तै बनिहारे ला
माटी सेवा बड़ करे, देस के किसान गा
:::::::देस मांगे कुरबानी, सुन लेवा मोर बानी
भेज बेटा हिंद फौज, माटी के मितान गा।
:::::::(4)
कहत हावे बोस हा, सुन गा किसान मोर
बाहुबली तन तोर, छोड़ तै निसान गा
मुठा भा गोरा मनके ढ़ेटु ला मसक देबे
आधाझन के डर मा, छुट जाही प्रान गा
चला सबो एक होवा, तिरंगा के आन बर
माता भारती पुकारे, चंडी के समान गा
आगी सही धधक जा, ज्वाला सही भड़क जा
हिन्द-सेना सेर बन, हर ले तै जान गा।
</poem>
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