भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
घर पहुँचने की बेकरारी / पीटर पाउलसेन / फ़ेर्नान्दो पेस्सोआ / अनिल जनविजय
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:46, 8 मार्च 2024 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=फ़ेर्नान्दो पेस्सोआ |अनुवादक=अन...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
घर पहुँचने के लिए
उड़ान भरने को तैयार पेड़ों को
तूफ़ान
सब्र करने के लिए मजबूर करता है ।
देखो,
कितना तड़प रहे हैं वे
अपनी डालें-डगालें हिला रहे हैं ।
अपने घर
अपने ब्रह्माण्ड में
पहुँचने के लिए
बेचैन हैं वे !
अँग्रेज़ी से अनुवाद : अनिल जनविजय