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चढ़ल रोज कतने चुनौटी के पानी / रामरक्षा मिश्र विमल
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चढ़ल रोज कतने चुनौटी के पानी
अबहुँओ ना बबुआ के मुँह पर रोहानी
ललाई बढ़ावल गइल ओठ के बा
उपासे रहो साँझ भलहीं चुहानी
जहाँ रोशनी के रहे ना बोलहटा
अँजोरिया के छिलबिल भइल बा दलानी
बढ़ल अर्थ बेपर्द फ्रीडम का नगिचा
गिरल जा रहल बा नजरिया के पानी
जवानी के चेहरा भरल झुर्रियन से
बुढ़ौती प गजबे चढ़ल बा जवानी
नगर के रङार्ई पोताई बढ़ल बा
चुअल ना भइल बन्न अजहूँ पलानी
नकल से बहुत दूर पहुँचल असंभव
असलके कही जिंदगी के कहानी