भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

चढु-चढु ए सुगना गगन गम्हीर / लछिमी सखी

Kavita Kosh से
Mani Gupta (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 18:11, 24 अगस्त 2013 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna | रचनाकार=लछिमी सखी}} {{KKCatPad}} {{KKCatBhojpuriRachna}} <poem>चढु-...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

चढु-चढु ए सुगना गगन गम्हीर।।
उ जे सीतल मंद सुगंध समीर।
जाहाँ झर-झर बहत धीरे धीर।।
चलु सखी पनिया भरि लेहु नीर।
सुखमन संगम सरयुग तीर।।
ससुरा से पतिया ले अइले महाबीर।
जहाँ बसे सतगुरु साहेब कबीर।।
लछिमी सखी चारो जुग कर पीर।
लेहु सखी कसमस अँगिया पहीर।।