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मगही लोकगीत ♦ रचनाकार: अज्ञात
चनन काटिए काटि, पिढ़वा<ref>पादपीठ, पीढ़ा</ref> बनयबइ सिवसंकर हे।
से पिढ़वा रामजी बइठयबइ, सुनहु सिवसंकर हे॥1॥
सोना के पइलवा<ref>पइला, नापने का एक माप जो बरतन के आकार का होता है। किन्तु यहाँ उसी आकार के सिन्धोरे से तात्पर्य है। काठ का कठोरानुमा बरतन, जिसमें सिंदुर, सन आदि रखे जाते हैं।</ref> में सेनुरा धरबहइ सिवसंकर हे।
सीता के मँगिवा भरयबइ, सुनहु सिवसंकर हे॥2॥
सोना के परियवा<ref>थाली</ref> में अछत धरबवइ सिवसंकर हे।
सेहु अछत रामजी चुमयबइ, सुनहु सिवसंकर हे॥3॥
घुमावे चखली में सासु मनाइन<ref>गौरी की माँ मेनका, मैना</ref> सिवसंकर हे।
चुमि-चुमि देल असीस, सुनहु सिवसंकर हे॥4॥
जुग-जुग जियजिन रामचंदर सिवसंकर हे।
होइहो अजोधेया के राजा, सुनहु सिवसंकर हे॥5॥
शब्दार्थ
<references/>