भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

चन्दरमा निरमळई रात / निमाड़ी

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 18:49, 21 जनवरी 2015 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKLokRachna |रचनाकार=अज्ञात }} {{KKLokGeetBhaashaSoochi |भाषा=निमाड़ी }...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

   ♦   रचनाकार: अज्ञात

चन्दरमा निरमळई रात,
तारो कँवऽ उँगसे?
तारो ऊँगसे पाछली रात,
पड़ोसेण जागसे जी।।
धमकसे मही केरी माट,
धमकसे घट्टीलो जी,
ईराजी घर आवसे,
रनुनाई खऽ आरती जी।।