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चरखो तो ले ल्यूँ, भँवरजी, रांगलो जी / राजस्थानी

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   ♦   रचनाकार: अज्ञात

चरखो तो ले ल्यूँ, भँवरजी, रांगलो जी

हाँ जी ढोला, पीढ़ा लाल गुलाल

तकवो तो ले ल्यूँ जी, भँवरजी, बीजलसार को जी

ओ जी म्हारी जोड़ी रा भरतार

पूणी मंगा ल्यूँ जी क बीकानेर की जी

म्होरे म्होरे री कातूँ, भँवर जी, कूकड़ी जी

हाँ जी ढोला, रोक रुपइये रो तार

म्हे कातूँ थे बैठा विणज ल्यो जी

ओ जी म्हारी लल नणद रा ओ वीर

अब घर आओ प्यारी ने पलक न आवड़े जी

गोरी री कमाई खासी राँडिया रे

हाँ ए गोरी, कै गांधी कै मणियार

म्हे छाँ बेटा साहूकार रा जी

ए जी म्हारी घणीए प्यारी नार

गोरी री कमाई सूँ पूरा न पड़े जी


भावार्थ

--'एक रंगीला चरखा ले लूंगी मैं, ओ प्रियतम ! अजी ओ ढोला, एक लाल-गुलाल पीढ़ा ले लूंगी । उत्तम, पक्के

लोहे का, ओ प्रियतम ! मैं तकला ले लूंगी । अजी ओ, मेरी जोड़ी के भरतार ! बीकानेर से पूनियाँ मंगवा लूंगी,

एक-एक मोहर के दाम से कातूंगी एक-एक कूकड़ी (पूनी) । अजी ओ ढोला, एक-एक रुपए का होगा एक-एक

धागा । मैं कातूंगी और तुम बैठे इसका व्यवसाय करना । अजी ओ, मेरी लाल ननद के भाई! जल्दी घर आओ,

तुम्हारी प्यारी को अब पल भर भी चैन नहीं ।'

--'स्त्री की कमाई खाएगा कोई नामर्द, या कोई इत्र बेचने वाला, या कोई मनिहार, ओ रूपवती ! मैं तो साहूकार

का बेटा हूँ । हे मेरी बहुत प्यारी नारी ! पत्नी की कमाई से काम नहीं चलता ।'