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चलता राही जब मंज़िल को / रसूल हम्ज़ातव / मदनलाल मधु

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चलता राही जब मंज़िल को
संग भला वह लेता क्या ?
रोटी लेता, मदिरा लेता ...
इनकी मगर ज़रूरत क्या ?

हम आदर - सत्कार करेंगें।
सिर आँखों पर, आने वाले !
रोटी तुम्हें पहाड़न देगी
और पहाड़ी मदिरा ढाले ।

 चलता राही जब मंज़िल को
संग भला वह लेता क्या ?
ख़ंजर तेज़ साथ में लेता ...
उसकी मगर ज़रूरत क्या ?

यहाँ पहाड़ों में स्वागत है
किन्तु अगर कोई दुश्मन,
कहीं घात में होगा, उसका
हम छलनी कर देंगे तन ।

चलता राही जब मंज़िल को
संग भला वह लेता क्या ?
गीत साथ में अपने लेता ...
उसकी मगर ज़रूरत क्या ?

गीत यहाँ अद्भुत्त से अद्भुत्त
उनका कोई नहीं शुमार,
फिर भी चाहो तो संग ले लो
उसमें नहिं ज़रा भी भार ।

मूल रूसी भाषा से अनुवाद : मदनलाल मधु