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<poem>
चले लखनऊ पहुंचे दिल्ली,
चतुर चौगड़ा<ref> खरगोश</ref> बनिगा गिल्ली<ref> गिलहरी</ref>।
हाटडाग सरदी भय खायिन,
झांझर<ref> जीर्ण-शीर्ण, कमज़ोर</ref> भये सुरू मा सिल्ली<ref> शिला, चट्टान</ref>।
समझि बूझि कै करो दोस्ती,
दरकि जाय न पातर झिल्ली।
</poem>
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