भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

चलो मधुवन में चलकर नाचें / गुलाब खंडेलवाल

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


चलो मधुवन में चल कर नाचें
चलते क्षण हरि ने दी थी जो मुरली, उसको जाँचे

बोली ग्वालिन एक बिलख कर
सुन तो वे लेंगे वंशी-स्वर
मिलता न हो भले ही अवसर
पत्र हमारे बाँचे

पूनो खिली दूध की धोयी
यमुना जाग पड़ी है सोयी
लो, आया कुंजों में कोई
भरते हरिण कुलाँचें

चलो मधुवन में चल कर नाचें
चलते क्षण हरि ने दी थी जो मुरली, उसको जाँचे