भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

चल बन्नी इस घर से बैठ मोटर में सजन घर जाना है / हिन्दी लोकगीत

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 11:07, 18 अप्रैल 2013 का अवतरण

यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

   ♦   रचनाकार: अज्ञात

चल बन्नी इस घर से बैठ मोटर में
सज्जन घर जाना है -२

कैसे चलूँ सजन के घर ओ कहार -२
दादा जी खड़े आँगन में लाज-शर्म मुझे आती है
ताऊ जी खड़े आँगन में लाज-शर्म मुझे आती है
चल बन्नी इस घर से बैठ मोटर में
सजन घर जाना है-२

कैसे चलूँ सजन के घर ओ कहार -२
पापा जी खड़े आँगन में लाज-शर्म मुझे आती है
चाचा जी खड़े आँगन में लाज-शर्म मुझे आती है
चल बन्नी इस घर से बैठ मोटर में
सजन घर जाना है -२

कैसे चलूँ सजन के घर ओ कहार -२
फूफा जी खड़े आँगन में लाज-शर्म मुझे आती है
मामा जी खड़े आँगन में लाज-शर्म मुझे आती है
चल बन्नी इस घर से बैठ मोटर में
सजन घर जाना है -२