भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"चाय की दुकान वाली सरोज / अवतार एनगिल" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अवतार एनगिल |संग्रह=एक और दिन / अवतार एनगिल }} <poem> ...)
 
छो ()
(कोई अंतर नहीं)

17:05, 23 जनवरी 2009 का अवतरण

चाय की दुकान वाली सरोज
नशा निरोधक नियम के तहत
बन्धिनी बनी-
तीन दिन...
तीन मास...
तीन साल...
मानो बीत ग्ए
तीन युग

पर मुकद्दमा पेश नहीं हुआ
तिहाड़ की एक कोठरी में बंद
करती रही
सुबह की प्रतीक्षा
जैसे-तैसे
कर जुगाड़
कुल बने चार हज़ार
उसने किया एक वकील
वकील था काले लबादे वाला भील
ले गया
उसकी उम्र भर की कमाई
आज तक शक्ल नहीं दिखाई

अब तो
तिहाड़ के तीन कपड़ों के सिवा
उसके पास कुछ नहीं
सरोज तिहाड़ को क्या दे?