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{{KKGlobal}}{{KKRachna|रचनाकार=गिरिराज किराडू}}कैसे देखते होंगे दो शव उन चार सौ विवाह उत्सवों को जिनकी रौनक के बीच से
गुजर कर उन्हें शमशान तक पहुंचाना है। कैसे देखती होंगी पान की दुकानें शवों और