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चाहइत हती देवे क / हम्मर लेहू तोहर देह / भावना

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चाहइत हती देवे क हम जिनका सम्मान।
चोट लगइअऽ देख क हुनकर खुद पर अभिमान॥

ई जिनगी के दौड़ में हम त हती अकेले।
पर मोनासिब हए न हर बात पर अपमान॥

अइ तरह जब लेईअऽ कोई पक्ष केकरो।
टूट जाइअऽ मन हम्मर देख क अलग फरमान॥

अप्पन जिनगी के राह टुकुर-टुकुर निहारइत।
काहेला हम हो रहल हती असगरे परेसान॥

अब हमहू खुस हती अखनी तक के उपलब्धि पर।
हम न केकरो तर झुकब मन में लेली ठान॥