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चाहे मैं भूलूँ तो भूलूँ मोहन! तू मत मुझको भूल / बिन्दु जी
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चाहे मैं भूलूँ तो भूलूँ मोहन! तू मत मुझको भूल,
जग प्रपंच का प्रबल पताका पवन पथ प्रतिकूल।
अधम अँध हूँ चलता अपनी रूचि के ही अनुकूल,
मोहन! तू मत मुझको भूल॥
आश्रय हीन श्रृष्टि तरु से हूँ क्या शाखा क्या मूल,
अभिलाषा है बन जाऊँ कल्पवृक्ष का फूल।
मोहन! तू मत मुझको भूल॥
रक्षा करे न चक्र सुदर्शन शंकर का त्रिशूल।
रहे सिर पर सदा फहराता तेरा पीत दुकूल।
मोहन! तू मत मुझको भूल॥
काय क्लेशित अश्रु ‘बिन्दु’ दृग हृदय विरह की शूल,
हे व्रजनाथ अनाथ दीन को दे दे पग तल धूल॥
मोहन! तू मत मुझको भूल॥