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चाह अब भी हो उसे मेरी, ज़रूरी तो नहीं / गुलाब खंडेलवाल
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चाह अब भी हो उसे मेरी, ज़रूरी तो नहीं
ऊम्र भर याद हो बचपन की, ज़रूरी तो नहीं
प्यार करने का उसे हक़ तो सभी का है मगर
प्यार बदले में करे वह भी, ज़रूरी तो नहीं
हर अदा उसकी क़यामत बनी है मेरे लिए
जानता भी हो इसे कोई, ज़रूरी तो नहीं
वक्त मिलता नहीं मिलने का तुम्हें, सच है, मगर
बस यही एक हो मज़बूरी, ज़रूरी तो नहीं
कहा गुलाब से मिलने को तो हँसकर बोला,
'आख़िरी रात हो यह उसकी, ज़रूरी तो नहीं '